आंवला एक ऐसा औषधीय गुण वाला फल है, जिसकी मांग आयुर्वेद में हमेशा से रही है। आज के भाग दौड़ की जिंदगी में लोग एलोपैथिक दवाओं को छोड़ आयुर्वेदिक दवाओं से रोगों का इलाज़ कराने में बेहतरी समझते हैं। आंवला के सर्वोत्तम गुणकारी होने के कारण इसकी मांग भी बढ़ने लगी है। यही कारण है कि आज बड़ी बड़ी कंपनियों में इसकी मांग होने लगी है।जहां तक इसके औषधीय गुण की बात है तो इसमें विटामिन सी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।अपने इसी गुण के कारण इससे कई तरह की दवाईयां जैसे त्रिफला चूर्ण,चय्वनप्राश,ब्रम्हा रसायन मधुमेधा चूर्ण बनती है। इसके अलावा इससे बालों को लिए टॉनिक,शैंपू,चेहरे के लिए क्रीम,दंतमंजन आदि भी वनाये जाते हैं।
औषधीय विशिष्ट लक्षण-स्कर्वी रोधी,मूत्रवर्धक,दात्तरोधी,जैविक रोधी और जिगर को पूष्ट बनाता है।
इस लिए इसकी खेती में लाभ है। इसकी खासियत ये भी है कि इसे शुष्क प्रेदश में आसानी से उगाया जा सकता है।
उपयुक्त भूमि-
1-हल्की और मध्यम भारी मिट्टी
2-रेतीली मिट्टी में ना उगायें
3-जिन प्रदेश में बारिस कम होती है वहां आसानी से उगाया जा सकता है।
जलवायु-
1-वार्षिक वर्षा-630 से 800 मि.ली. आदर्श
2-नये पौधे को तीन साल तक मई जून में गरम हवाओं से बचायें
3-सर्दी के मौसम में पाले से बचायें
उन्नत किस्में-
1-बनारसी
2-चक्कैया
3-फ्रांसिस
4-कृष्णा
5-कंचन
6-भवानीसागर
लागत
क्र।सं। सामग्री प्रति एकड़ प्रति हेक्टेयर
1। कलम की संख्यां 200 500
2। फार्म यार्ड खाद (टन) 4 10
रासायनिक खाद
3। नाईट्रोजन 90 225
4। फॉस्पोरस 120 300
5। पोटाश 48 120
विशेष नोट-रोपण के पहले प्रत्येक गढ्ढे में 15 किलो ग्राम गोबर की खाद 500 ग्राम फॉस्फोरस डालना चाहिए। लगाये गए पौधे में 10 साल तक हर साल सितंबर अक्टूबर में नाईट्रोजन का व्यवहार जरूर करें।
कृषि तकनीक-
1-4.5x4.5 मी. की दूरी पर 1 मी. गहरा गढ्ढा मई जून में खोद लें।
2-15 से 20 दिन के लिए धूप लगने दें।
3-पौधे के रोपाई के पहले हर गढ्ढे में 15 किलो गोबर का खाद और 500 ग्राम फॉस्फोरस को मिला कर डालें।
अधिक पौदावार के लिए अलग अलग किस्मों को 2.2.1 अनुपात में लगायें ताकि पैदावार लगातार मिलता रहे। उदाहरण के लिए अगर कृष्णा ,कंचन और एनए-7 किस्मों का चुनाव किया है तो उसे 80- एनए-7,80- कृष्णा और 40- पौधे कंचन के लगायें।
सिंचाई-
गर्मी में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई दें।मानसून में बारिस के बाद सितंबर-अक्टूबर में ड्रिप सिंचाई दें।
कटाई छटाई-
तीन चार स्वस्थ्य और मुख्य तनों को छोड़कर दिसंबर में छंटनी कर दें।
कीट नियंत्रण-
1-छाल खाने वाली इल्ली उपचार-ग्रसित तना के छेद में इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफॉस को रुई में भिंगोकर छेद बंद कर दें।
रोग से उपचार-पौधे पर रोग के लक्षण दिखने पर इंडोफिल एम 45 का 2 ग्राम एक ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
उपज-
फलों को फरवरी में उस समय तोड़े जब वे फीके हरे रंग को छोड़कर हल्के पीले रंग को पकड़ने लगे।फलो को बांस से हुक के सहारे तुड़ाई करें। 10 साल के पौधे से एक बार में 50 से 60 किलो फल मिलता है। इस तरह आंवला के पौधे से 70 साल तक फलों की पैदावार ली जा सकती है।
बुधवार, 27 मई 2009
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