सोमवार, 29 दिसंबर 2008
गेहूं में सिंचाई का महत्व
भारत के अनाज उत्पादन में गेहूं का अपना एक अलग महत्व है। देश में चावल के बाद गेंहू की खपत सबसे अधिक है। यही कारण है कि उत्तरी भारत के मैदानी भागों में गेहूं की खेती पर ज्यादा जोर दिया जाता है। अगर इसके उत्पादन को देखें तो इसमें और अधिक सुधार की गुंजाइस है,बशर्ते कि इसके वैज्ञानिक तरीके अपनाये जाएं। वैसे तो बीज से लेकर फसल कटाई तक आधुनिक तरीके की जरूरत पड़ती है, लेकिन फसल के बीच में भी किसान अगर कुछ बातों पर गौर करें तो उत्पादन में 40 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। जहां तक बीच फसल में ध्यान देने योग्य बातें हैं उनमें सिंचाई सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। अक्सर किसान समझते हैं कि दो या तीन सिंचाई से गेहूं का अच्छा उत्पादन संभव है। लेकिन जानकारी के लिए बाता दें कि मैदानी भागों में जहां सिंचाई के बेहतर साधन मौजूद हैं,वहां कम से कम 6 सिंचाई उत्पादन को बढ़ा सकता है। ऐसा देखा जाता है कि सर्दी के मौसम में किसान सिंचाई में कंजूसी करते हैं। जबकि इस मौसम में वातावरण में नमी का गिरना और चढ़ना जारी रहता है। ऐसे में गेहूं के लिए नमी की खास जरूरत पड़ती है।इस समय में अगर मिट्टी में नमी बनाये रखा जाय तो फसल के बढ़वार में काफी सहायक सिद्ध होता है और पाला से भी सुरक्षा हो जाता है। इसके अलावा जब गेहूं के बाली में दूध बनने लगे तो उस समय भी सिंचाई पर खास ध्यान देना जरूरी होता है , इस समय पौधे में पानी की कमी होगी तो दाने पुष्ट नहीं बनेंगे।जबकि ठीक इसी समय किसान सिंचाई नहीं करना चाहते हैं।उन्हें ये डर होता है कि उनकी फसल पानी लगने से गिर जायेगी।कुछ हद तक ये बात सही भी है,लेकिन जब बाजार में बौने किस्म के बीज उपलब्ध हैं जो उत्पादन में भी काफी उन्न्त हैं तो उन्हीं बीजों का चुनाव करें। फिलहाल जहां बौने किस्म लगाये जा रहे हैं वहां के किसान गेहूं के बाली में दुध बनने के समय सिंचाई का ध्यान जरूर रखें।.....धन्यवाद....
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1 टिप्पणी:
कृष्ण भाई,
अभिवादन
चलभाष पर आपसे संवाद के पश्चात आपके ब्लाग से भी खुशी मिली। आपके सभी पोस्ट बिहार की मूल आत्मा - कृषि को स्पर्श कर रही है,इस क्षेत्र मे आपके योगदान से भी प्रभावित हूँ। रमण भाई को स्मरण। शुभकामनाएं
आपका भाई
- अरविन्द श्रीवास्तव
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